गीतिका/ग़ज़ल

गीतिका

ना जमाना याद रखिए ना तराना याद रखिए ना अपना याद रखिए ना सपना याद रखिए । भूल गया वह जमाना भूल गया वह तराना जाने कहां गए वो दिन ये गाना याद रखिए । अब जो बचा हुआ है मानो वो अपना नहीं सच में क्या खोना है क्या पाना याद रखिए । राजा […]

कविता

मौसम का तराना

आज की मेरी कविता मौसम का तराना क्या कहूँ कैसा जादू है इस कदर। मौसम आज दिल को लुभाने लगा॥ सूर्यदेव की मिजाज देखिए जनाब। अंधेरा सारा कहीं दूर सरकने लगा॥ चिडियाँ कहीं डाली पर बैठकर गाती। वह सुरताल मन मोहित करने लगा॥ कलियाँ फूल बनकर खिलने लगी। आलम सारा बनठन के झुमने लगा॥ दिल […]

कविता

भारत माता की जय

जिनको बोलना है बोलो मेरे संग हट जाओ बाजू में ना बोलना हो। तुम्हारा मकसद हम सब जानते है जाओ गर अमृत में विष घोलना हो॥ इंसानियत की जरा सी फिक्र हो समझो वतन की महकती चमन को। खून खराबा मत होने दो भाई बरकरार रहने दो हसीन अमन को॥ क्या बिगाडा किसी ने तुम्हारा […]

भाषा-साहित्य

पुस्तक प्रोन्नयन : समस्याएँ एवं संभावनाएँ

“पुस्तकें जहाँ भी होंगी, वह स्वर्ग बन जाएगा।” यह उक्ति  बालगंगाधर तिलक की है जो सत्य को प्रकट करती है। पुस्तक का महत्व ही इस एक उक्ति से हम समझ पाते हैं। पुस्तक मानव जीवन में हमसफर, गुरु एवं मार्गदर्शक का पात्र बखूबी निभाते हैं। जब भी अवसर मिलता है तो पुस्तकों से बढकर कोई […]

राजनीति

कर्नाटक में हिंदी की स्थिति

कर्नाटक राज्य दक्षिण भारत का एक बडा राज्य है। इसका भू विस्तार 1,91,756 च.कि.मी. है। यहाँ की आबादी लगभग 6 करोड से भी ज्यादा है, और साक्षरता का प्रमाण 75 प्रतिशत से भी ज्यादा है। जनसंख्या की दृष्टि से भारत में नौवां स्थान और भौगोलिक दृष्टि से सातवाँ स्थान प्राप्त है। और कर्नाटक चंदन एवं […]

सामाजिक

संवेदना

“क्या करूँ संवेदना ले कर तुम्हारी ? क्या करूँ ? मैं दुःखी जब-जब हुआ संवेदना तुमने दिखाई, मैं कृतज्ञ हुआ हमेशा रीति दोनों ने निभाई, किंतु इस आभार का अब हो उठा है बोझ भारी; क्या करूँ संवेदना ले कर तुम्हारी ? क्या करूँ ?’’ ये पंक्तियाँ श्री हरिवंश राय बच्चन जी की कितनी सहज […]

भाषा-साहित्य

विश्वमानव बसवेश्वर और आधुनिक युग : जमीन आसमां का अंतर

“ न करो चोरी, न करो हत्या न बोलो मिथ्या, न करो क्रोध न करो घृणा, न करो प्रशंसा अपनी न करो निंदा दूसरों की, यही है अंतरंग शुध्दि यही है बहिरंग शुध्दि ॥“१ महात्मा बसवेश्वर के इस वचन को पढते ही हम गहरी सोच में पड जाते हैं कि आज के इस आधुनिक युग […]

भाषा-साहित्य

स्वातंत्र्योत्तर आधुनिक हिन्दी कविता

” हम सबके दामन पर दाग हम सबकी आत्मा में झूठ हम सबके माथे पर शर्म हम सबके हाथों में टूटी तलवारों की मूठ ॥ “ ये पंक्तियाँ धर्मवीर भारती जी की हैं जो स्वातंत्र्योत्तर आधुनिक हिन्दी कविता की प्रवृत्ति को दर्शाती है। अब कविता हो या कोई भी साहित्य विधा वास्तविकता को ही अपना […]

भाषा-साहित्य

सुभद्राकुमारी चौहान और राष्ट्रवाद

राष्ट्रवाद और देशप्रेम सुभद्राकुमारी चौहाब जी के रग रग में भरा हुआ था। इसलिए उनकी कविताओं में राष्ट्रप्रेम और वीर रस भरपूर मात्रा में देखने को मिलता है। राष्ट्रीय कविताओं की दृष्टि से उनकी ’जालियाँवाला बाग में बसंत’, ’राखी’, ’विजय दशमी’, ’लक्ष्मीबाई की समाधि पर’, और ’वीरों का कैसा हो बसंत’ आदि कविताओं में सुभद्रा […]

भाषा-साहित्य

कवि रहीम : एक सामाजिक चिंतक

“बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया  कोय।      जो दिल खोजा आपना, मुझसा बुरा न कोय ॥” ’समाज’ व्यक्तियों का मिला-जुला रुप है, न्याय-अन्याय, धर्म-अधर्म, सुख-दुख का मेल इस समाज में हम देख सकते हैं। यह सामाजिक व्यवस्था आजकल की नहीं है बल्कि प्राचीन काल से ही चली आ रही है, और किसी […]