अप्रैल का महीना था। स्कूलों की वार्षिक परीक्षा परिणाम घोषित किये जा रहे थे। इस वर्ष तनु अपने स्कूल के कक्षा पाँचवीं में प्रथम आयी थी। उसके छोटे भाई शुभम ने भी कक्षा तीसरी की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की थी। दोनों भाई-बहन स्कूल से अंकसूची लेकर आये और बैठक कमरे में टेबल पंखे […]
Author: टीकेश्वर सिन्हा "गब्दीवाला"
लघुकथा : कद्दू-चनादाल की सब्जी
क्षमा अपनी पढ़ाई कम्पलिट कर शहर से अपने गाँव आई। पूरे घर भर को उसका बेसब्री से इंतजार था। बड़ा अच्छा लगा सबको। हर तरह की बातें हुई। सब बहुत खुश थे। स्नेह व आत्मीयता क्षमा पर बरस रही थी। सभी अपने-अपने हाथों से रोज उसे कुछ न कुछ बना कर खिलाने लगे। […]
कहानी – सृजन धारा
“…हूँ…हूँ …हूँ …हूँ ….देखा एक ख्वाब तो ये सिलसिले हुए… दूर तक निगाह में हैं गुल खिले हुए…. ये गिला है आपके निगाहों से, फूल भी हो दरमियाँ तो फासले हुए…” तकिए को बिस्तर पर जमाते हुए रेडियो के चित्रपट संगीत कार्यक्रम में चल रहे गीत को गुनगुना रही थी। “…तभी तेरी आवाज है हवाओं […]
बालकहानी : वनदेवी
जैसे ही शिखर को पता चला कि चंदा हथिनी के दल का एक बुजुर्ग हाथी तालगाँव के समीप नर्रा जंगल में अपने दल से बिछुड़ कर इधर-उधर भटक रहा है ; वह तुरंत , ‘ हाथी देखने जा रहा हूँ दीदी… ‘ , कहते हुए विभा के मना करने के बावजूद घर से निकल पड़ा। […]
लघुकथा- आखिर क्यों ?
सौतेली माँ के दुर्व्यवहार की पीड़ा झेलती किरण एक शहर में ससुराल आई। सीधा-सादा पति तो मिला; पर सास-ननद की एक खतरनाक जोड़ी से उसका पाला पड़ा। वैसे पति से कोई शिकायत नहीं थी; क्योंकि बचपन में उसने पिता नाम का एक पुरुष देखा था। ससुराल में मिली गरीबी की दंश से बचने के लिए […]
बालकहानी- बिट्टू बंदर ने की मदद
कड़ाके की ठंड पड़ रही थी। साँझ होते ही जंगल के सभी जानवर अपने-अपने घरों में दुबक जाते थे। ऐसा लगता जैसे कि जंगल भर बदन कँपकँपाती हवा का पहरा हो। छोटे बच्चों को घर से बाहर निकलने की बिल्कुल इजाजत नहीं थी। अगर कोई गलती से बाहर निकल जाता, तो उसे अपने मम्मी-पापा की […]
लघुकथा – महर्षि धौम्य की चिंता
अपने गुरू महर्षि धौम्य की आज्ञा पाकर आज शाम को आरूणि खेत गया। खेत पहुँचकर देखा कि मेड़ कटी हुई है। पानी खेत से निकल रहा है। बारिश भी हो रही है; और थमने का कोई आसार नहीं। रात गहरी होती जा रही है। उसने आश्रम लौटना उचित समझा। आरूणि को देखते ही महर्षि धौम्य […]
बालगीत – पंछी बन जाएँ
चलो कुछ कर जाएँ, हम पंछी बन जाएँ। नील गगन उड़ते हुए। चींव-चाँव करते हुए। नदी पर्वत देख आएँ। हम पंछी बन जाएँ। पड़े हुए दानों को। पके हुए फलों को। मिल-बाँट कर खाएँ। हम पंछी बन जाएँ। बना कर स्वयं […]
लघुकथा : अस्तित्व
आज मैंने अचानक उसे देख लिया। वह मैली-कुचैली साड़ी में लिपटी थी। अनमनी-सी लगी। पूछ बैठा। ” कौन हो तुम ?” “एक दुखियारी हूँ।” “दुख का कारण ?” “एक हो तो बताऊँ।” “फिर भी ?” “अपने अस्तित्व की सुरक्षा को लेकर।” “वो कैसे ?” “मैं कल क्या थी, आज क्या हो गयी ; और कल […]
लापता शिक्षक
एक शख़्स को देखते ही यशवंत को अपना हाई स्कूल स्टडी लेवल याद गया। मीडिल स्कूल की अपेक्षा हाई स्कूल में कितना इम्प्रूवमेंट आया था उसमें सब जानते थे। आज यशवंत स्वयं पी. डब्लू. डी. विभाग में एक अधिकारी पद पर हैं। उनका मानना है कि क्या पकड़ है उस शख्स की हिंदी और संस्कृत […]