एक तो गर्मी दूसरे दिन भर की कठोर मेहनत से मजदूर अधिक थके-थके लग रहे थे । ठेकेदार उन्हें एक मिनट की भी फुरसत नहीं देता था । उन मजदूरों में एक अधेड़ उम्र की मजदूरन कुछ दिनों से काम पर आने लगी थी । पाँच बजते ही सभी काम से निवृत्त हो हाथ-पैर धोकर […]
Author: विश्वम्भर पाण्डेय 'व्यग्र'
जिंदगी के रंग (कहानी)
मैं मेरी किशोरावस्था से एक विशेष नाम का जिक्र सुनता रहा । वो नाम हमारे क्षेत्र का जाना-पहचाना नाम था । जब भी साहित्य पर चर्चा होती तो उनकी रचनाएँ अवश्य चर्चा में आती । उन्हें साहित्य के कई बड़े-बड़े सम्मान भी मिल चुके थे । मैं बड़ों की बातों को सुन-सुनकर उस नाम का कायल […]
लौट के आना…
मातृ-दिवस पर माँ को समर्पित एक रचना माँ ब्रह्मा सी जन्मदात्री माँ विष्णु सी पालन कर्ता माँ शंकर सी भोली भाली माँ गलतियों की संहर्ता माँ तेरे आँचल से अच्छा और नहीं कोई सिंहासन तेरी सर परस्ती में माँ कानन भी लगता है आँगन मिट गया सानिध्य तुम्हारा अब जग सारा लगे विराना करूँ प्रतिक्षा […]
तू कितनी मेहनत करता है
तू कितनी मेहनत करता है वो इसी बात से डरता है चलता रहता रुकता न कभी सुख मिले उसे रुक जाये अभी क्यूँ कदम कदम रंग भरता है वो इसी बात से डरता है । वो चल ना पाता तेरे संग बस ये ही ढंग तेरा करे तंग क्यूँ लम्बे कदम तू धरता है वो […]
व्यंग्य – यूँ तो नजर…
यूँ तो नजर कई तरह की होती है जिसके निश्चित प्रकार गिने नहीं जा सकते, पर हाँ आज हम कुछ नजरों के बारें में चर्चा करते हैं । एक नजर से परिचय सर्वप्रथम बचपन में माँ ने कराया, जब हम नयें कपड़े पहनकर घर से बाहर निकलते तो माँ कहती – मेरे कान्हा को किसी […]
आओ पेड़ लगाएं
आओ पेड़ लगाएं हम समझे और समझाएं हम ।। आम जामुन शहतूत खजूर पीपल नीम वट हो भरपूर मीठे फल औषधि के दाता जंगल फिर से उगायें हम । फिर से हमसब करें विचार मित्र सम हो इनसे व्यवहार पोषित और सुरक्षित रखें नियम ऐसा अपनाएं हम । मानसून का इनसे नाता पेड़ आक्सीजन के […]
दुनिया के रंग और होली
होली को भारत वर्ष के बड़े त्योहारों में से एक माना जाता है । होली भी अन्य त्योहारों की तरह पौराणिक संदर्भों से जुड़ी हुई है । होली आपसी भाईचारे के साथ आपसी दुश्मनी मिटाने का भी अनुपम त्योहार है । होली के दिन हाथ गुलाल की थैली ले मैं घर से निकला मैंने सोच […]
एक आदमी दो वसंत (लघु व्यंग्य)
मनुष्य प्रकृति की अनुपम छटा को वसंत के रूप में सदियों से देखता आया है । प्रकृति का ये आशीर्वाद विश्व के अनेक देशों के पास नहीं है,,, हाँ, हम इस मामले में अवश्य अपने को भाग्यशाली कह सकते हैं ।वसंत के क्या कहने जिधर देखो उधर खुशबु का सैलाब, फूलों के अंबार इस समय […]
वसंत संयोग नहीं
वसंत एक दिन का नहीं कई सप्ताहों का महीनों का होता है वसंत पंचमी तो शुभ मुहूर्त है परिवर्तन का सौन्दर्य के नर्तन का पेड़ों से पत्तों का झड़ना फिर नवीन चोला गढ़ना आमों में बोर के आने तक कोयल के झुरमुटों में गाने तक समय है इसका ये ॠतु ही नहीं उत्सव है प्रकृति […]
दिल सूअर का … (व्यंग्य)
जब भी कोई आज के विज्ञान की उन्नति की बात करता है तो उसकी बात काटने को कोई ना कोई हमारे यहाँ मौजूद मिल ही जाता है और वह बिना रुके, चलने वाली एक्सप्रेस ट्रेन की भाँति एक ही सांस में इतनी बातें उड़ेल देता है कि आज के विज्ञान का विकास सिकुड़ कर कौने […]