कविता

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छंद मुक्त रचना : सताती गर्मी

तपे जेठ दुपहरिया संझा गरम बयरिया। भोर ,शीतलता खोती रातें मुंह ढ़क के रोती। धरती का जलता सीना पशु पक्षियों

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