गाँव से मतलब वह क्षेत्र, धरती का वह भाग जहाँ मेहनती लोग बसते हों, खेती हो, हरियाली हो, पेड़-पौधे हों, अन्न और फल हों। गाय-भैंस हों, दूध-घी हो। पक्षियों की चहचहाहट हो। खुले बहते झरने-नदियाँ हों। खुला आकाश हो, साफ हवा हो। जानवरों के लिए चारागाह हो। यानि मनुष्य ही नहीं, प्राणी मात्र के लिए […]
संस्मरण
रेल का सफर
लगभग पच्चीस छब्बीस वर्ष पहले की बात है। जब मैं अपनी माँ और बहन को लेकर मिहींपुरवा (बहराइच) से रेल द्वारा गोण्डा से आ रहा था। उस समय छोटी रेल लाइन थी, साथ ही एकल पटरियां थीं। नानपारा में क्रासिंग होने के कारण मैं दो तीन और परचितों के साथ स्टेशन के बाहर चाय पीने […]
अंतिम दर्शन से वंचित
होली के लगभग एक सप्ताह पूर्व ११ मार्च २००० को मेरे पिताजी (श्री ज्ञान प्रकाश श्रीवास्तव, ग्राम विकास अधिकारी, विकास खंड मिहींपुरवा) का निधन विभागीय कार्य हेतु सेंट्रल बैंक आफ इंडिया की मिहींपुरवा, बहराइच उ.प्र. शाखा में ब्रेन हैमरेज से हुआ था। मुझे अपनी बात रखते हुए पीड़ा भी हो रही है और अपने निर्णय […]
संस्मरण
एक बार केबीसी में एक लड़का बता रहा था कि मेरी मां की इच्छा की वजह से हम बहन भाई पढाई कर पाये क्यूंकि मां विपरीत परिस्थितियों के कारण पढ नहीं पाई पर उन्होने मन में ठान लिया था कि मैं अपने बच्चों को अवश्य पढाउंगी ! उसकी बात सुन कर मुझे भी अपने पिताजी की […]
कल तक अजनबी
लगभग दो वर्ष पुरानी बात है जब मैं पक्षाघात से उबरने के दौरान पुनः लेखन में सक्रिय हुआ था। मेरे एक संस्मरण को पढ़कर अहमदाबाद से ७६ वर्षीय बुजुर्ग आ. गोपाल सहाय श्रीवास्तव जी ने अहमदाबाद से मुझे फोन किया। वे मेरे उस संस्मरण से बहुत प्रभावित हुए और जी खोलकर मेरी हौसला अफजाई की। […]
डर दूर हो गया
कुछ माह पूर्व काफी सोच विचार करने के बाद मैंने सरल, सहज, प्रेरक व्यक्तित्व, वरिष्ठ कवि/गीतकार डा. देवेन्द्र तोमर जी से उनके पटल पर डरते डरते अपने लाइव काव्यपाठ के लिए लिखा। दो तीन में ही जब उन्होंने स्वीकृति दी, तो मेरी खुशी का ठिकाना न रहा। क्योंकि उनके पटल पर जिन्हें भी मैं लाइव […]
मेरे सिर पर उसका हाथ
२९ मई २०२२ की रात लगभग १.३० बजे तक कुछ उलझनों के चक्रव्यूह में उलझा जागता रहा। निद्रा देवी थीं, कि वो भी मेरी उलझनों से दोस्ती गाँठकर जैसे मुझे मुँह चिढ़ा रही थीं। मोबाइल में कब तक उलझा रहता। उलझनों के मकड़जाल में फँसे होने के कारण कुछ लेखन, पाठन भी संभव नहीं हो […]
आईरीन बिल डेविस : पुत्री के लिए चिंतित रहते हैं सभी माता-पिता
यह बात 1972 की है। मैं ल्यामुंगो (तन्जानिया) के काफी रिसर्च स्टेशन पर रिसर्च अफसर की प्रतिनियुक्ति पर या। परिवार साथ ही था। हमारे बंगले के साथ प्रिजांट परिवार तथा उससे अगले बंगले में डेविस परिवार रहता था। वे भी हमारी तरह विदेशी थी और कैनेडा सरकार की सहायता से चल रहे कृषि सुधार परियोजना […]
गाड़ी का हार्न
मेरी प्रतिनियुक्ति तंजानिया के काफी रिसर्च इन्स्टीट्यूट लूयामुंगो में थी। यह स्थान मोशी शहर से 15 किलोमीटर दूर था।मैं अपने परिवार के साथ परिसर में ही रहता था।हम लोग प्रायः सायंकाल को 4 बजे के लगभग अपनी गाड़ी से ही मोशी जाते थे। कभी-कभी हमारे सहयोगी भी साथ चले जाते थे। ऐसे ही एक बार […]
दिन में तारे दिख जाना
बिटिया ऑफ़िस के लिए निकल चुकी थी| पतिदेव भी नाश्ता कर चाय पी रहे थे| मैं अपने लिए हल्की सब्जी बना रही थी रसोई में। ‘बड़ी बीमारी’ की तो दवा ले चुकी थी बस शुगर(मधुमेह) की दवा लेने की सोच ही रही थी कि साहब बोले, “अच्छा जा रहा हूँ”| गैस की लौ मंदी कर […]