संस्मरण

संस्मरण – अच्छे साहित्यकार नहीं, अच्छे व्यक्ति बनिए

बाबा नागार्जुन की इतनी स्मृतियाँ मेरे मन और मस्तिष्क में भरी पड़ी हैं कि एक संस्मरण लिखता हूँ तो दूसरा याद आ आता है। मेरे व वाचस्पति जी के एक चाटुकार मित्र थे। जो वैद्य जी के नाम से मशहूर थे। वे अपने नाम के आगे ‘निराश’ लिखते थे। अच्छे शायर माने जाते थे। आजकल […]

संस्मरण

संस्मरण “अच्छे साहित्यकार नहीं अच्छे व्यक्ति बनिए”

संस्मरण “अच्छे साहित्यकार नहीं अच्छे व्यक्ति बनिए”—(चित्र में- (बालक) मेरा छोटा पुत्र विनीत, मेरे कन्धे पर हाथ रखे बाबा नागार्जुन और चाय वाले भट्ट जी, पीछे- आज से वर्ष पूर्व का खटीमा का बस स्टेशन। जहाँ दुर्गादत्त भट्ट जी की चाय की दुकान थी, साथ में वह भी खड़े हैं)—बाबा नागार्जुन की इतनी स्मृतियाँ मेरे […]

संस्मरण

मेरी डायरी के ये पन्ने… और वो तुम्हारी यादें…

मुझे इस बात से कहाँ इंकार है कि तुम मेरी नब्ज़ों का तरन्नुम बन गए थे, उन दिनों, मैं किस हद तक तुम्हारी दीवानगी में मुब्तिला रहा करता था, तुम मेरे अहसासात  पर किस तरह  छाए हुए रहते थे, में तो भूल नहीं पाता हूँ, क्या वो सभी पल आपने इतनी आसानी से भुला दिये, तुम्हारे बग़ैर ये […]

संस्मरण

संस्मरण – वे दिन भी क्या थे

मुझे आज भी वे दिन याद हैं जब गर्मी की छुट्टियों में मुंबई से मेरे बड़े ताऊ जी – ताई जी, पापा, भैया – भाभी महानगरी ट्रेन से गाँव आते थे। घर के सभी लोग बहुत ख़ुश होते थे। कि मई माह तक सभी लोग साथ में रहेंगे। 1990 तक मेरे घर का पिछला हिस्सा मिट्टी […]

संस्मरण

होली के बहाने

“दीदी, रमैया कल से काम पर नहीं आएगी अब वह 15 दिन के बाद ही वापस काम पर आएगी।” मेरे घर में काम करने वाली 18 वर्षीय रमैया की मां सावित्री बाई ने जब मुझे यह बात बोली तो मैं हैरान हो गई। तब मुझे यही लगा कि शायद रमैया की तबीयत खराब है या […]

संस्मरण

यादें

ननिहाल की बात ही अलग होती थी साल भर इंतजार करने के बाद महीने भर की छुट्टी और उन गर्मी की छुट्टियों में साल भर का प्यार का मिल जाता था वो दौर ही अलग था लोगों के मकान छोटे और दिल बड़े हुआ करते थे । घड़ी सिर्फ़ नाना जी के हाथों में हुआ […]

संस्मरण

नेऊरा भ‌इया!

मैं नोयडा में हूं। नोयडा, विकास के पैमाने पर विकसित है, यह पैमाना पश्चिम का है। इन दिनों इस विकास को महसूसने का प्रयास कर रहा हूं। यहाँ की सड़कें चमचमाती और गुलजार रहती हैं। हम एक सोसायटी में रहते हैं। ऊँची-ऊँची बिल्डिंगों के रहवासियों से बनती हैं ये सोसायटियां। सड़कों से गाड़ियां इन सोसायटियों […]

संस्मरण

शीर्षक: विंडो वाली सीट

बात उस समय की है जब मैं कक्षा नवीं दसवीं की छात्रा रही होंगी। मेरे मामा जी रोहतक हरियाणा में रहते थे। मई-जून की गर्मियों की छुट्टियों में हम अक्सर सपरिवार उनके पास उनके घर रहने जाया करते थे। मामा जी के घर जाने से कहीं ज्यादा उत्सुकता और खुशी हमें ट्रेन में बैठने की […]

संस्मरण

मेरी प्यारी नानी

सफेद सूट, लंबे-लंबे सफेद बाल, गोरा रंग, चमकता चेहरा, माथे पर तेज, आवाज में मिठास, हर बात पर मुस्कुराहट, हम सभी नाती-पोतों को खाना अपने ही हाथों से खिलातीं। सफाई पसंद इतनी कि मजाल है जो कपड़े पर एक दाग लग जाए या किसी को कम ज़्यादा मिल जाय। ऊपर से नीचे तक सफेद लिबास […]

संस्मरण

लोग सरकारों को कोसना बंद कर देंगे जब अपनी गिरेबां झांक लेंगे।

आजादी से पहले देश के एक ओ भी नेता थे जिन्होंने अपनी जान पर खेल कर गुलाम देश को आजाद कराया था और भारत को एक नवजात शिशु की भांति देशवासियों को सौंप कर इस देश से हमेंशा -हमेंशा के लिये मां भारती की गोद में चिर निद्रा में सो गये, आज हमारा देश सिर्फ […]