मेरी कहानी – 46
फगवारे आ कर हम कुछ आज़ाद से महसूस करने लगे थे। ऐसा तो नहीं था कि हमें घर में कोई
Read Moreफगवारे आ कर हम कुछ आज़ाद से महसूस करने लगे थे। ऐसा तो नहीं था कि हमें घर में कोई
Read Moreस्कूल में तो अब बहुत दोस्त बन गए थे। स्कूल से वापिस गाँव में आ कर भी कुछ घर का
Read Moreअब हम शहर की ज़िंदगी में अच्छी तरह घुल मिल गए थे। जो एक झिजक थी वोह कब की दूर
Read Moreरामगढ़िआ इंस्टिट्यूटस के बारे में कुछ लिखना चाहूंगा। जिस महान शख्सियत ने यह सब स्कूल कालज बनाये उस का नाम
Read Moreमास्टर विद्या प्रकाश और मूलराज के बाद पंजाबी के टीचर आनंदपाल सिंह होते थे, बहुत हंसमुख, बूटिओं वाली पगड़ी और कोट
Read Moreहमारे इम्तिहान हो गए थे और हम गाँव में घूमते रहते। जैसे अक्सर होता है, उम्र के बढ़ने के साथ ही हमारा
Read Moreहमारी मिडल स्कूल की पढ़ाई आख़री दिनों तक आ पौहंची थी। हमारे टीचर साहेबान अपना सारा धियान हम पर लगाए हुए थे
Read Moreमेरे जैसे इंसान के लिए स्वजीवनी लिखना इतना आसान नहीं है क्योंकि अपनी कहानी लिखने के लिए सचाई लिखनी पड़ती
Read Moreदुनिआ में सब कुछ भूल सकता है लेकिन एक ऐसी चीज़ है जो किसी को नहीं भूलती , वोह है “माँ”।
Read Moreदादा जी की यादें बहुत हैं ,इसी लिए वोह हर घड़ी याद आते रहते हैं। उन को पशुओं से बहुत स्नेह था।
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