आत्मकथा : मुर्गे की तीसरी टांग (कड़ी 31)
अपने स्कूल की राजनीति में तो मैं सक्रिय और प्रमुख भाग अदा करता ही था, विश्वविद्यालय स्तरीय राजनीति में भी
Read Moreअपने स्कूल की राजनीति में तो मैं सक्रिय और प्रमुख भाग अदा करता ही था, विश्वविद्यालय स्तरीय राजनीति में भी
Read More13. राजसी लूट अल्लाह-हो-अकबर का नारा बुलंद करती मुस्लिम सेना तूफान की तरह महल में घुसी। सोलह वर्ष से अधिक आयु
Read Moreउस वर्ष 1981 में छात्र संघ के चुनावों में मैंने अपने स्कूल से श्री बी. राजेश्वर का पार्षद पद के लिए
Read More12. धर्म रक्षण हेतु पलायन ”महाराज आप राजकुमारी देवलदेवी को लेकर गुप्त मार्ग से निकलिए, समय बहुत कम है।“ कंचन सिंह
Read Moreजवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के सतलुज छात्रावास में रहते हुए मेरे कई ऐसे मित्र बने जो मेरे सहपाठी नहीं थे। उनमें
Read More11. युद्ध की विभीषिका आन्हिलवाड़ की छोटी-सी सेना के अग्रिम में 200 घुड़सवार थे इसका संचालन सेनापति इंद्रसेन कर रहा था।
Read Moreवि.वि. में प्रारम्भ में मैं सबसे कटा-कटा रहा। सौभाग्य से वहाँ मेरे कमरे का साथी तथा कुछ पड़ोसी बहुत सहयोगशील
Read More10. मिलन और बिछोह कोई आधी रात के समय सेनापति अपने शयन कक्ष में आया। पत्नी चंद्रावलि उसकी प्रतीक्षा कर रही
Read Moreशीघ्र ही वहाँ से टेस्ट तथा इन्टरव्यू का बुलावा आ गया। तारीख दो-चार दिन बाद की ही थी अतः हमने
Read Moreबालक तलवार लेने के लिए आगे बढ़ता है तभी कक्ष के द्वार पर आहट सुनकर दोनों द्वार की तरफ देखते हैं।
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