उपन्यास : शान्तिदूत (पेंतीसवीं कड़ी)
कृष्ण के आने से पहले ही राजसभा में सभी लोग उपस्थित हो गये थे और अपने-अपने स्थान पर बैठे थे।
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Read Moreअगली सुबह रमुआ को लेकर धनुवा दीवानपुर प्राइमरी पाठशाला पर पहँुचा तो प्रधानाचार्य तिवारी जी से सीधे बात हुई। तिवारी जी
Read Moreअगले दिन प्रातःकाल कृष्ण और सात्यकि नित्यकर्मों से निवृत्त हुए। फिर राजसभा में जाने के लिए तैयार होने लगे। वहां
Read Moreरधिया ने चार आलू काटकर, दो प्याज की महीन फाँकें काटकर कराही में छौंक लगा दी और दूसरी तरफ चूल्हे
Read Moreअतिथि शाला में सात्यकि और अपने सारथी के निवास की व्यवस्था देखकर कृष्ण अकेले ही अपनी बुआ कुंती से मिलने
Read Moreगाँव के पहरे पर बैठे हुए ग्राम देवता अपने मन्दिर में से सभी कहारों की बस्ती के रखवाले बनकर सदा
Read Moreकृष्ण द्वारा सुदर्शन चक्र से शिशुपाल का सिर काटने के दृश्य को याद करके सब भयभीत हो गये। उन्होंने देखा
Read Moreकृष्ण के स्वागत से लौटते हुए दुर्योधन के मन में बहुत रोष था। वह अपने रोष का प्रदर्शन करना नहीं
Read Moreजब पांडवों का दूत यह समाचार लेकर हस्तिनापुर पहुँचा कि स्वयं भगवान श्रीकृष्ण पांडवों की ओर से समझौते के लिए
Read Moreजैसे ही रथ उपप्लव्य नगर की सीमा से बाहर निकला, वैसे ही सात्यकि ने अपनी जिज्ञासा, जो उसने बहुत समय
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