उपन्यास : शान्तिदूत (अट्ठाईसवीं कड़ी)
पांडवों के जाते ही कृष्ण ने सात्यकि को बुलवाया। सन्देश मिलते ही वह उपस्थित हो गया। कृष्ण ने उनसे कहा-
Read Moreपांडवों के जाते ही कृष्ण ने सात्यकि को बुलवाया। सन्देश मिलते ही वह उपस्थित हो गया। कृष्ण ने उनसे कहा-
Read Moreपांडवों ने कृष्ण को हस्तिनापुर जाने के बारे में सहमति दे दी थी, लेकिन कई बातें अभी भी उनके मस्तिष्क
Read Moreप्रातः ही कृष्ण अपने नियमित समय पर उठे। नित्य की क्रियाओं से निवृत्त होकर उन्होंने युधिष्ठिर के पास संदेश भेज
Read Moreपांडवों की ओर से सन्धि का प्रस्ताव लेकर हस्तिनापुर जाने का निश्चय कर लेने के बाद कृष्ण इस बात पर
Read Moreउसी रात्रि को अपने कक्ष में अपने पलंग पर लेटे हुए कृष्ण बहुत गहरे विचारों में डूबे हुए थे। उनके
Read Moreशहर पहुंचकर चौक पर बस रुकी रमेश थैला लेकर, और बैग लटकाए बस से नीचे उतरा, रमेश ने उतरते ही
Read Moreकृष्ण को अच्छी तरह याद था कि उसी दिन राजसभा में कौरवों के सन्देशवाहक के आने पर क्या-क्या बातें हुई
Read Moreकुछ ही देर में अनिल मामाजी ने दरवाजे पर दस्तक दी, शंकर घर में कहीं जाने के लिए तैयार बैठा
Read Moreरात को ना ज्यादा ठण्ड थी और ना अधिक गर्मी मामी जी चौके पर भोजन की तैयारी में लग गयी
Read Moreअब कृष्ण इस राजसभा के बाद की घटनाओं पर विचार करने लगे। पांडवों के पुरोहित ऋषि धौम्य युधिष्ठिर का सन्देश
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