कुंडलिया : धीरज
धीरज मन झरने लगा, कटा आम का पेड़ गरमी बढ़ती जा रही, दिखे पेड़ इक रेड़दिखे पेड़ इक रेड, हरे
Read Moreधीरज मन झरने लगा, कटा आम का पेड़ गरमी बढ़ती जा रही, दिखे पेड़ इक रेड़दिखे पेड़ इक रेड, हरे
Read Moreविधाता छन्द= १२२२ १२२२ १२२२ १२२२ १२२२ निशा दिखती शमा जैसी – बहारो गीत गाओ तुम सुधा पीकर जिए लैला
Read Moreदेख चुनावी जीत को, मनवा भरे उमंग नेता जी पर चढ़ गया, जूं फ़ागुन का रंग जूं फ़ागुन का
Read Moreजवाँ तुम हो जवाँ हम हैं, जवाँ ये वादियाँ सारी। जवाँ है धड़कनें दिल की, जवाँ मैं दिल गयी हारी।
Read Moreकजरे की धार नही मोतियों के हार नही चेहरा रुप रंग अंग सब बे मिसाल है बिन श्रृंगार रुप देख
Read Moreराजनीति में ‘फर्जी-डिग्री’ होना मंत्रियों को मियादी बुखार होने जैसा है । यह बीमारी फिर से उखड़ गई है ।
Read Moreआल्ह छ्न्द===== १६+१५=३१ चरणांत गाल -२१ ================================ फागुन पिया गये परदेश, —-भेजे कोई ना संदेश / जियरा मोर झूमि के
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