क्षणिका

क्षणिका: सीमाएं

अक्सर आदतन/ तथाकथित बुद्धिजीवी / सुशोभित करते हैं / अपनी बुद्धिमता से/ चमचों और भक्तों की सीमाएं / और …इनकी सीमाएं?? अंजु गुप्ता ‘अक्षरा’

क्षणिका

चांद: तुम घुमंतु हो!

चांद, तुम घुमंतु साहित्यकार हो या नहीं घुमंतु तो हो ही! कहीं टिककर रहना तो तुमने सीखा ही नहीं वैसे घुमंतु होने का भी अपना आनंद है नए-नए मनोहारी स्थलों के दर्शन भी करो और ज्ञानवर्धन भी हो!

क्षणिका

वोट पर क्षणिकाएं

-1- चुनावी रण में दिखें/ शराब-शबाब हथियार/ पर… जागरूक मतदाता/ न करे वोट बेकार!   -2- बैलट पर बुलेट/ है लोकतंत्र पर चोट/ नेताओं की नियत में/ दिखता है खोट!   -3- हाथ में वोट/ या हाथ पर वोट / …बहुत फर्क है/ होती थी अब तक/ हकों पर चोट!   अंजु गुप्ता ‘अक्षरा’

क्षणिका

प्यार

कभी तेरी बातें कभी तेरी भावनाएँ मुझे तरसाती हैं दिन-रात वक्त-बेवक्त बार-बार सोचने लगा तभी मैं समझा वही तो प्यार है जो मुझे तुमसे है — सुराज दिलशान बालगे, श्री लंका

क्षणिका

मेरी माँ

वे हैं रौनक मेरी दुनिया को महकानेवाली वे हैं जंगली कली मेरी तू ही पूजा और सुकून मेरी नाम से वे माँ हैं मेरी — दिलिणि तक्षिला सेव्वन्दि

क्षणिका

दो क्षणिकाएं

नाचो नाचो कि रश्मियों का राग गाकर सूर्य नाच रहा है, चंद्रमा अपनी शीतल किरणों से खुशी की कथा बांच रहा है, धरती झूम रही है अपने बच्चों को नाचकर खुश होते देखकर, पत्ता-पत्ता, डाली-डाली, तालियां बजाकर झूम-नाच रहा है. नृत्य जीवन एक नृत्य है जिसमें, सूरज गाना गाता है, चंदा तबला बजाता है, लाखों […]

क्षणिका

रोटी पर क्षणिकाएं

रोटी अजब नज़ारा/ गरीब को… न वक्त पे रोटी/ अमीर को… न रोटी को वक्त अब बतलाओ … कौन बेचारा? ****** 2 ***** भूख, गरीबी और उत्पीड़न, “रोटी” से जुड़े/ मुद्दे तो हैं… पर छुपाए जाते हैं ! सत्ता के शतरंजी खेल में अक्सर/ नए मुद्दे बनाए जाते हैं ! ! ******** 3******** गरीबी उन्मूलन […]

क्षणिका

जिंदगी: चार काव्यमय पहलू

जिंदगी जिंदगी को सलीके से जीना है, तो मत रखो मन में मलाल, बजने दो आनंद के बाजों को, नाचो मिलाके सुर-से-सुर और ताल-से-ताल. जिंदगी सुख-दुःख का मेला है, मत समझो ये झमेला है, समय के पहिए हैं ये इसके चलते रहेंगे, जो न समझे वो रह जाता अकेला है. अनेक रंग दिखाती है जिंदगी, […]

क्षणिका

जिंदगी

जिंदगी एक छोटा-सा कमरा है जिसमें या सपने रह सकते हैं या बहाने जिनके कमरे में सपनों का निवास है वे भर सकते हैं ऊंची उड़ानें बहानों के निवास वाले क्या कर सकते हैं वे जानें और सिर्फ़ वे ही जानें! लक्ष्य न ओझल होने पाए सपनों को साकार करने को कदम मिलाकर चल अपनों […]

क्षणिका

समय

आदमी की रीढ़ और कुत्ते की पूँछ बताती है पता बुढ़ापे का। रीढ़ झुकती जाती है और पूँछ खुलती जाती है। होता जाता है ज्यों-ज्यों उमरदार आदमी टेढ़ा और कुत्ते की पूँछ सीधी। — डॉ. दीपक आचार्य