1-क्या तुम…. क्या तुम मृगतृष्णा हो या माया हो या आईने के भीतर की कभी न पकड़ आनेवाली छाया हो 2-खलिश….. जाते जाते छोड़ जाते हो सीने में खलिश तब घेर लेता है मुझे इश्क़ का आतिश (खलिश =चुभन ,आतिश =अग्नि ) 3-लब… होता होगा कुछ तो मतलब जिसे कह नहीं पाये आज तक तेरे […]
क्षणिका
क्षणिका : ज़िन्दगी
कोशिश तो बहुत की है ज़िन्दगी ने रुलाने की, लेकिन मेरी भी जिद है इसे हंस के बिताने की ! — धर्म सिंह राठौर
क्षणिकायें…
क्षणिकायें… 1-मुझे छेड़ो मैं साज हूँ सुनो एकांत में मैं तुम्हारे ही दिल की आवाज हूँ 2-मन रोज लिखता है अपनी आत्म कथा लिख लिख कर मिटाना चाहता हैं अपनी कहानी से वह अपना दर्द अपनी व्यथा 3- बंदगी एक दूसरे की कविताओं को पढ़ते हुऐ बीत रही है जिंदगी तुम कहती हो […]
क्षणिकायें…
1-खुशी रास्ते में मिले पेड़ नदी और सागर लेकिन खुश हुआ एक दिन मैं तुम्हें पाकर 2-रास्ता मेरा सिर्फ तुझसे है वास्ता तेरी और ही जाता है मेरा हर रास्ता 3-हीरा तेरे नूर से रहता हूँ सदा घिरा मैं सोना हूँ तू है हीरा 4- फेसबुक आपके आते ही आ जाती है […]
क्षणिकायें
१-तेरा पता तुम्हें खत रोज लिखता हूँ तेरा पता मालूम नहीं तेरी खुश्बू से महकता हूँ रूबरू तुझसे मिला नहीं २-बात बात नहीं होती तब भी बात होती है बात करने के लिए अब सामने होना तेरा ज़रूरी नहीं है ३-सोहबत जिनसे है मुझे मोहब्बत उनकी तस्वीर के साथ है मेरी सोहबत […]
क्षणिकायें
१-इंतज़ार हम रुके रहे तेरे इंतज़ार में सदियाँ बीत गयी पता ही नहीं चला २-हुस्न हुस्न पर इतना भी न किया करो ऐतबार बिना खता किये बन जाओगे गुनाहगार 3-तुम” तुम्हें देखने से मुझे अब कौन रोक पायेगा मेरे ख्याल में मेरे ख़्वाब में तुम जो आते हो 4-सौंदर्य का वर्णन… तराशा हुआ है तेरा […]
क्षणिकायें
१-दोस्ती धीरे धीरे गहरी होती है दोस्ती सीप के भीतर बरसों रहने के बाद ही एक बून्द बनती है मोती २-चेहरा एक चेहरा तेरा मुझे याद रहता है हमेशा सलोना जिसे मेरी स्मृति नहीं चाहती है कभी भी खोना ३-ख्याल रूबरू मिलने से होता नहीं फायदा एक दूसरे के ख्याल यदि मिल जाएँ तो जीने […]
क्षणिकाएं
1. रंजिश थी तुम को ख़ुद से निशाना था कोई और तुम ख़ुद ना ख़ुद के हो सके ज़माना तो ग़ैर था 2. नौ महीने जिसने जिस्म तुम्हारा ढोया था नौ मिनट उसको तुम कांधा ना दे सके 3. छलनी देश तेरा दुश्मन कर गया । लानत है तुझ पे ओ मेरी माँ के लाड़ले 4. […]
क्षणिकायें
१. ठोकर लगी तो पत्थर औरत बन गया यहीं से सिलसिला शुरू हुआ औरत को ठोकर मैं रखने का फिर सभी ने मान लिया शापित है स्त्री २. यूँ ही नहीं पूजा जाता कोई ना जाने कितने ज़ख़्म मिलते हैं पत्थर को पत्थर से मूर्ति बनने तक तब जाकर वो मंदिर में बिठाई जाती है […]