गज़ल
ये ज़िंदगी बेमकसद सा इक सफर निकला, जिसे समझा था आदमी वो पत्थर निकला, मैं करता भी अगर किससे शिकायत
Read Moreपास तुम बैठो जरा सा बात कुछ करनी अभी है। बाद में देना बहाना वक़्त की जो भी
Read Moreइश्क में ख़ुद को मिटाना पड़ता है सोच सोच के कदम बढाना पड़ता है मोहब्बत का मकां बनाने के लिए
Read Moreमंज़र दिल का उदास अच्छा नहीं लगता तुम नहीं होते पास अच्छा नहीं लगता तेरी क़दबुलन्दी से नहीं इनकार कोई
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