उस पार जुलाहा बैठा है
एक चादर हुई झीनी तो क्या कोई ग़म मत कर यार उस पार जुलाहा बैठा है और हम आये मझधार,
Read Moreएक चादर हुई झीनी तो क्या कोई ग़म मत कर यार उस पार जुलाहा बैठा है और हम आये मझधार,
Read Moreये अमावस की रातें, हमसे करती हैं बातें। छेड़ जाती हैं मन को, चाँदनी की बरातें। कुछ उजड़ते घरौंदे, टूटते
Read Moreप्रश्न इस समय नहीं पराजय-जय का नहीं हास व नहीं शोक का न ही मृत्यु-भय का सतत चुनौती को स्वीकारे
Read Moreनमो नमो जय मोदी जी हर दर्जे हर पर्चे में है अब खबर गर्म बस मोदी जी बड़े बड़े दिग्गज
Read Moreसब कुछ वही पुराना सा है! कैसे नूतन सृजन करूँ मैं? कभी चाँदनी-कभी अँधेरा, लगा रहे सब अपना फेरा, जग
Read Moreमेरी चिता के ऊपर पहचान तब बनाना, जगतारिणी नदी में तब अस्थियां बहाना। लाखों गये डगर से, पर मुश्किलें वहीं
Read More‘हँ-सो’ की गंगा में बह कर, हँसों के उर ध्यान किए; आते जाते भाव सिंधु में, स्वर सरिता में मिल
Read Moreभूरे भुवन में छाए हुए, मेघ मधु हुए; जैसे वे धरित्री ही हुए, क्षितिज को लिए ! दिखती धरा कहाँ
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