मुक्तक (बेख़बर देहलवी)
मुक्तक दिलबर तिरे बगैर मैं जी नहीं सकता ज़हर जुदाई का और पी नहीं सकता ज़िन्दगी की चादर भी इतनी
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Read Moreमुक्तक सच में ऊबे हम इन यारानों से लोग अब पलटने लगे ज़बानों से रिश्ते मतलब से यहाँ बनाते हैं
Read Moreमुक्तक मेरे ख़तों का आज जवाब आया है बीते हुए पलों का हिसाब आया
Read Moreमुक्तक जीवन में तो प्यार जरुरी होता है ! आँखों से व्यापार
Read Moreआबादी के दंश से पर्यावरण खराब । आबादी को रोक के, धरा करेंगे साफ।1। पेड़ों में ब्रम्हा ,विष्णु ,पेड़ो
Read Moreसही नहीं पर्यावरण, भारत में प्रभु आज। जंगल कटते जा रहें, नहि आयें सब बाज। नही बढाना है अगर, जनमानस
Read Moreजला रहा है कौन सहारनपुर बस्ती को, कभी दलित कभी ठाकुरों की हस्ती को। साध रहा है कौन लक्ष्य होकर
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