मुक्तक
गर जरूरी हो तभी घर से निकलना चहिये चलने वालों से सही दूरी भी रखना चहिए जाने मिल जाये कहां
Read Moreखूबसूरत झुकी पलकें तुम्हारी सीप लगती हैं किसी नीले समंदर की छोटी सी झील लगती है, न जाने क्यों तमन्ना
Read Moreज्ञानी उसको मानिए, समरुप करे प्रकाश जैसे चंदन वृक्ष से, चहुँ दिग फैले वास जग में नर वह बाँटता, जो
Read Moreजब भी लड़ने के लिए, लहरें हों तैयार।कस कर तब मैं थामता, हाथों में पतवार।।—बैरी के हर ख्वाब को, कर
Read Moreस्वारथ का संसार यहां संबंधी कौन किसी का। रिश्ते-नाते, परिजन, परिचित बनते अंग इसी का। पर होता कोई जिसकी यादों
Read Moreघर आने की जद्दोजहद, भूखे बेबस व लाचार, जान की परवाह नहीं, पहुँचे कैसे भी घर द्वार। सैकड़ों मीलों जाकर,
Read Moreलॉक डाउन के चौथे चरण में खुलने लगी दुकान, झट पट अधिकतर दौड़ पड़े हैं, खरीदने सामान। पर इतना समझ
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