हमीद के दोहे
आत्म प्रसंशा से नहीं, बनती है पहचान। सब करते तारीफ जब,तब मिलता सम्मान। पुख्ता होती है तभी, रिश्तों की बुनियाद।
Read Moreआत्म प्रसंशा से नहीं, बनती है पहचान। सब करते तारीफ जब,तब मिलता सम्मान। पुख्ता होती है तभी, रिश्तों की बुनियाद।
Read Moreपत्तों को सब सींचते, नहीं सींचते मूल। नवयुग में होने लगीं, बातें ऊल-जुलूल।। — सबके अपने ढंग हैं, अपने नियम-उसूल।
Read Moreबेटी का स्वागत करो,…ना कर तू संहार। न हों धरा पर बेटियाँ, मिट जाये संसार।। निर्मम हत्या भ्रूण की,….मत कर
Read Moreपहली बारिश आ गई, लोग मचाते शोर। धरती तपती अब नहीं, लगे सुहानी भोर।। घुमड़ घुमड़ कर आ गए, फिर
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