“मुक्तक”
शीर्षक — भाषा/बोली/वाणी/इत्यादि समानार्थक तुझे छोड़ न जाऊँ री सैयां न कर लफड़ा डोली में। क्या रखा है इस झोली
Read Moreछंद – हरिगीतिका (मात्रिक) मुक्तक, मापनी – 2212 2212 2212 2212 फैले हुए आकाश में छाई हुई है बादरी। कुछ
Read Moreबहना का तो प्यार है, भाई का विश्वास ! राखी की इस डोर में,रिश्तों का अहसास !! उत्साहित है
Read Moreआँगन की रौनक बहाना होती है, भाई के जीवन की गहना होती है। नेह के धागों पर रंग दुआओं के,
Read Moreलड़ता रहा मौत से प्रतिपल, किंचित ना भयभीत हुआ। सत्ता और विपक्ष भी जिसका, निष्ठा से मनमीत हुआ। देह त्याग
Read Moreसमय का पहिया चलेगा जब तक, अटल अटल था अटल रहेगा। छोड़ दिया देह मगर अब, जीवन दर्शन अटल रहेगा।
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