“वृद्ध पिता मजबूर”
करके सभी प्रयास अब, लोग गये हैं हार। काशी में उलटी बहे, गंगा जी की धार।। पूरी ताकत को लगा,
Read Moreकरके सभी प्रयास अब, लोग गये हैं हार। काशी में उलटी बहे, गंगा जी की धार।। पूरी ताकत को लगा,
Read Moreपसरी पसरी धूप है , दिन भी हुए निढाल ! कोप करे सूरज तपे , होकर लालम लाल !!
Read Moreबिकते हैं बाजार में, जिनके रोज जमीर। छल-बल से होते यहाँ, वो ही अधिक अमीर।। फाँसी खा कर रोज ही,
Read Moreमाँ ने अपनी सांसें देकर मुझको पाला है, भ्रूणमात्र को धारण कर जीवन को ढ़ाला है। आँचल के नीचे रखकर
Read Moreहो सके तो कर समर्पण आज अपने आप को। कर सका क्या मन प्रत्यर्पण पूछ अपने आप को। आ नहीं
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