“कता”
मापनी – 2122 2122 2122 2122 जब प्रत्यक्ष हम हुये तो जान पाये तुम घिरे थे। बाढ़ में बहने लगे
Read Moreमाता सच में धैर्य है,लिये त्याग का सार ! प्रेम-नेह का दीप ले, हर लेती अँधियार !! पीड़ा,ग़म में भी
Read Moreदर्पण ने नग़मे रचे,महक उठा है रूप ! वन-उपवन को मिल रही,सचमुच मोहक धूप !! इठलाता यौवन फिरे,काया है भरपूर
Read Moreहमसे कहता पर्व हर , सदा विनत् हो भाव अहंकार की लुप्तता, निशिदिन सत्य प्रभाव धर्म सदा होता विजयी, शुभ-मंगलमय
Read Moreबिखरी हो जब गंदगी, तब विकास अवरुध्द घट जाती संपन्नता, बरकत होती क्रुध्द वे मानुष तो मूर्ख हैं, करें शौच
Read Moreमाथे का चंदन बनी, दुर्भावों की धूल। पीपल आरोपित हुए, पूजित हुए बबूल।। जाने कैसा हो गया, माली का व्यवहार।
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