कुछ हाइकु
कटे जब से हरे भरे जंगल उगीं बाधाएँ कोसते रहे समूची सभ्यता को बेचारे भ्रूण दौड़ाती रही आशाओं की कस्तूरी
Read Moreआँगन सूना भाए नहीं पीहर तेरे बिन माँ राह तकें ना नैन बिछाए कोई दर पे खड़ा छूटा आँचल
Read Moreअमन चाँदपुरी के तीन हाइकु 1. वृक्ष की छाँव न मिले शहर में गर्मी में गाँव। 2. बहती हवा बहका
Read Moreगुंजन अग्रवाल 1 शर्मीला चाँद सिन्धु तट उतरा मेघों की ओटI 2 जीव इच्छाएँ सागर सी अथाह रही अधूरी/ होती
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