कविता
वह संपूर्ण है रिश्तों को जोड़ती हुई कड़ी वो परिपूर्ण है। वह ज्वाला है खुशियाँ बिखेरती हुई एक नायाब उजाला
Read Moreसमय नहीं रहता एक सा परिवर्तन शाश्वत नियम तू न डरना चट्टानों से कर्म करना सचेत संयम। संकरे मार्ग से
Read Moreघर आने की जद्दोजहद, भूखे बेबस व लाचार, जान की परवाह नहीं, पहुँचे कैसे भी घर द्वार। सैकड़ों मीलों जाकर,
Read Moreलॉक डाउन के चौथे चरण में खुलने लगी दुकान, झट पट अधिकतर दौड़ पड़े हैं, खरीदने सामान। पर इतना समझ
Read Moreहोश सँभालने से अबतक, थैले ढो रहे हैं बाबूजी; बचपन में स्लेट व पोथी लिए थैले ढोये थे बाबूजी; कुछ
Read Moreरहा अम्बर धरा का अनुपम मिलन है चुप रहो, सांझ सिन्दूरी का स्नेह अभिनन्दन है चुप रहो।। आलिंगन के साज
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