कविता
जीवन को घेरती हमेशा बारहमासी चिंताएं तन मन धन की चिंता तो साथ चलती अब पर वायरस करोना कर दिया
Read Moreपुस्तकालयों में बिखरी हुई हैं , हजारों हजार किताबें बिखरी हुई किताबें तड़प रही हैं किताबें—- कोई हाथ इन्हें छूए
Read Moreसमय सबका आता है, समय सब बदल देता है । उम्मीद का दामन क्यो छोड़े हर चीज़ बदलती है ।।
Read Moreबिखरी,बिखरी सी थी अब स्वयं में सिमटने लगी हूं मैं सलीके की जिंदगी से अब थोड़ी बेपरवाह होने लगी हूं
Read Moreछोटी छोटी बनी मढैया, घास फूंस की पडी हो छैया, मिट्टी की दीवारें उसकी, धरती पर गोबर की लिपैया। फल
Read Moreहर घर में हो अब नारी की शिक्षा पाकर वह अपने परिवार का करें दीक्षा ना दो अब कोई नारी
Read Moreचैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नौवीं तिथि जब आती है नवरात्रों का होता है समापन इस दिन राम नवमीं
Read More“कन्हैया” के लिए वॉलीवुड और साउथ फिल्मों के विलेन से लेकर ‘गॉड मदर’ के द्वारा प्रचार करने क्यों हैआवश्यक ?
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