प्राणाधार
स्वार्थ लोलुप मानव देखो, कैसे तुमको हैं काट रहे। अपने ही पतन को देखो, अब भी नहीं हैं भाँप रहे।।
Read Moreऐे सैनिक,फौज़ी,जवान, है तेरा नितअभिनंदन। अमन-चैन का तू पैगम्बर,तेरा है अभिवंदन।। गर्मी,जाड़े,बारिश में भी,तू सच्चा सेनानी अपनी माटी की रक्षा
Read Moreकिसी के घाव पर मरहम नहीं छिड़कती है ये दुनिया। बस मौका मिले तो जीभर घाव कुरेदती है ये दुनिया।
Read Moreमन की इच्छा हो तुम मेरे जीवन की अभिलाषा हो , धुंधले से मेरे शब्दों की, तुम स्पष्ट रूप परिभाषा
Read Moreहां! मुखर हो गई है,,, मेरी लेखनी लिखना नहीं चाहती… यह कविता! कैसे लिखे सुंदरता पर यह जब रोज मरे…
Read Moreएक तरफ हम ‘गीता’ को आदर्श मानते हैं । कर्म को सबका गूढ़ मानते हैं , दूसरी तरफ उस रचना
Read Moreमेले में कुम्हार के बच्चे…. जांता-चकरी, सकोरे, साधू-संन्यासी, वकील, मसकबाजेवाले, बकरी-खिलौने…. बिके तो ‘जिलेबी’ खाएंगे, दोनों भाई-बहन…. चाचा नेहरू ने
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