कविता

कवितापद्य साहित्य

रास छंद “कृष्णावतार”

रास छंद “कृष्णावतार” हाथों में थी, मात पिता के, सांकलियाँ। घोर घटा में, कड़क रही थी, दामिनियाँ। हाथ हाथ को,

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