रोजगार
“रोजगार” इक अंगार, जिसमें दिन-रात, मैं जलता हूँ। कभी खुली, तो कभी छिपी, बेरोजगारी में मैं पलता हूँ। “रोजगार” इक
Read Moreआसमां से तारे लाती सबका दिल शीतल कर देती उसके बिन सुना जग सारा ए सखि साजन?ना सखि माता।
Read Moreडॉ. सदानंद पॉल अलमस्त कविताएँ…. 1. इवीएम हराम क्यों है ? चश्मा क्यों न हराम है ? मोबाइल फोन क्यों
Read Moreतुम श्रद्धा, तुम स्निग्धा रूपसि तुम अवतार हो तुम वात्सल्यमयी जननी तुम हृदय झंकार हो। नील
Read Moreकुछ स्मार्ट कविताएँ 1. ●बर्थडे गर्ल दुनिया की सबसे सुंदर महिला और मेरी विचलित प्रेम की मरीचिका मेरी प्रेमिका– “नव
Read Moreमन की माया तन से निर्मल जैसे जल बहता हो अविरल सौंदर्य परित करता कल कल करता सिंचित धरिणी का
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