खुद को लिखते रहो
मैं कोई पाषाण नहीं जो ठोकर खाकर पड़ी रहूं, न मैं माटी की मूरत हूं जो एक कोने में सजी
Read Moreमैं कोई पाषाण नहीं जो ठोकर खाकर पड़ी रहूं, न मैं माटी की मूरत हूं जो एक कोने में सजी
Read Moreमईया के श्रीचरणों में मैं, जब जब शीश झुकाता हूँ। पता नहीं क्यूँ मानो जैसे, जीवन का सुख पाता हूँ।।
Read Moreआधुनिकता की सौगात, गुम सज्जनता और सरलता। दम तोड़ता इंसानियत, जीवन में बस रिक्तता ही रिक्तता। समझौते पर टिका रिश्ता,
Read Moreपुरानी तस्वीरों के साथ कुछ नए जज्बात लिखूंगा, जो तूने सोचा भी नहीं था कभी वो हर चीज अपनी तकदीर
Read Moreफिर ये नजर हो न हो , मै और मेरी तनहाई , नजर आएगी , तुम तेरा मुस्कुराता , चेहरा
Read Moreसिडनी में नवम्बर महीना, जामुनी फूलों का मौसम, प्रकृति ने मानो जामुनी चूनर ओढ़ ली है. लॉन पर जामुनी फूलों
Read Moreकहाँ हो तुम मिलते नहीं वहाँ जहाँ आजकल रहते हो तुम दिल के मकान से जी भर गया या किसी
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