छंद मुक्त काव्य
“छंदमुक्त काव्य” गुबार मन का ढ़हने लगा है नदी में द्वंद मल बहने लगा है माँझी की पतवार या पतवार
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Read Moreमेरा वैराग्य, वास्तव में मेरा सौभाग्य है। मेरी हस्ती, उस खुदा की मस्ती है। मेरा निश्चल प्रेम, उस ईश्वर का
Read Moreजगजननी जगदम्बिका, मैं सृष्टि का अभिमान हूँ। ना सीता ना द्रोपदी, ना महाकाली का नाम हूँ। मैं आज की नारी
Read Moreमेहंदी का रंग रुठ गया चूड़ी का साथ दो पल में टूट गया, तुम्हारे लहू से मेरे माथे का सिंदूर
Read Moreसाहब, मैंने दर्द पढ़ा नहीं, देखा है, मैंने भूखे प्यासे बच्चों को रोते देखा है। मैंने स्टेशन पर उनको
Read Moreदर्द का सा नशा हैं स्मृतियों में, जो अधरों पर अदा रूप में आता हैं। इन्द्रधनुष सा रंग दिखाता, औ
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