श्रृंगार…
श्रृंगार! श्रृंगार दर्पण है व्यक्ति का, उसके व्यक्तित्व का निखार आता है श्रृंगार से आकर्षण है श्रृंगार में वसंत ऋतु
Read Moreक्या हो रहा है हमको ??? कहाँ से कहाँ जा रहे है हम ?? शायद आधुनिक हो रहे है। हम
Read Moreवह चटकती है कांच सी खिलती कचनार सी टूटती है दीवार सी राह में नारी के विकार हैं,व्यवधान हैं दुविधाएँ
Read More. सुनो सखी, सुनो आओ आई आज पिया की पाती हैं . रात दिन तड़पू मैं यहाँ याद जब उनकी
Read Moreउजाले मंद हुए , मैं मयखाने चला गया। जख्म उजागर ना हो,मैं पीता चला गया।। जैसे जीवन से कभी नफरत
Read Moreकामना है यही न हमें मंज़िल की तिश्नगी थी, न तलाश हमें तो राह के कांटों से ही राहत मिल
Read More