कविता – नेट पर सेट
नेट पर मैं हमेशा सेट रहती हूँ पड़ोस में क्या हुआ नहीं जान पाती हूँ ? घर में पति और
Read Moreनेट पर मैं हमेशा सेट रहती हूँ पड़ोस में क्या हुआ नहीं जान पाती हूँ ? घर में पति और
Read Moreकुछ पल गुजारे थे तुम्हारी जुल्फों के साये में उन पलों को भूल नहीं सकता मैं दिन-रात मगन रहता देख
Read Moreराजनीति के देखो भाई खेल निराले होते हैं धर्म मजहब में बाट दिया और फील गुड कराने लगते हैं नौकरी
Read Moreसमय का पहिया टिक टिक कर के धीरे धीरे चलता है । जीवन पथ है आग का दरिया और अंगारो
Read Moreकभी उसने पुकारा ही नही पलटकर हमे, हम बस यूँ ही उसे जाते हुए निहारते रहे, हर वक्त साथ चलने
Read Moreआज मैं भी उदास हो गया हूँ जीवन की एक आस हो गया हूँ अपना ही ग़म भुलाने के लिए
Read Moreछंद -“पद्धरि”(पदपादाकुलक की उपजाति)*शिल्प विधान – मात्रा भार =16, आरम्भ में गुरु अनिवार्य *पदपादाकुलक चौपाई में चार चौकल बनते हैं
Read More(40 मात्रा, क्रमागत दो-दो चरण तुकान्त, मापनीयुक्त मात्रिक) मापनी – 212 212 212 212, 212 212 212 212, अथवा –
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