शायद मैं बड़ा हो रहा हूँ!
अपने अरमानो का गला घोंटकर , आजकल मैं छुपके से रौ रहा हूँ, शायद मैं अब बड़ा हो रहा हूँ!
Read Moreअपने अरमानो का गला घोंटकर , आजकल मैं छुपके से रौ रहा हूँ, शायद मैं अब बड़ा हो रहा हूँ!
Read Moreसुनो प्रिये कुछ खत लिख रही हूं जब आना तब खुद ही पढ़ लेना हर रोज सिर्फ़ तुमको याद किया
Read Moreअधर पर कहानी रहेगी सभी को जुबानी रहेगी अज़ब खेल यह जिन्दगी कर सदा सत्य कहती रहेगी अख़म रूप को
Read Moreसतयुग नहीं,,, वो भी कलयुग था ! जब इन्द्र सम पुरुष धर छद्मवेश करते थे शीलहरण और शाप की भागी
Read Moreकितने पाखण्डी बन धर्मगुरु करें ढोंग, अधर्म, पाखण्ड और मनमानी फैलाए तिलिस्म, असत्य की जमीं पर ! कहें… खुद ही
Read Moreअजर है, अमर है आत्मा कभी नहीं मरती, यह आत्मा मरता है तो यह नश्वर शरीर मलीन – और पंच
Read Moreचंद स्वर्ण सिक्के जो शायद धरोहर हो हमारे पूर्वजों के सोचता हूँ अगर ये कभी संग्रहित करने के बदले गरीब
Read Moreउम्र तो हर दिन बढे मोह का बंधन छूटे ना कर्म से सब फल मिले भाग्य अगर जो फूटे ना
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