वो भी कलयुग था !
सतयुग नहीं,,, वो भी कलयुग था ! जब इन्द्र सम पुरुष धर छद्मवेश करते थे शीलहरण और शाप की भागी
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Read Moreकितने पाखण्डी बन धर्मगुरु करें ढोंग, अधर्म, पाखण्ड और मनमानी फैलाए तिलिस्म, असत्य की जमीं पर ! कहें… खुद ही
Read Moreअजर है, अमर है आत्मा कभी नहीं मरती, यह आत्मा मरता है तो यह नश्वर शरीर मलीन – और पंच
Read Moreचंद स्वर्ण सिक्के जो शायद धरोहर हो हमारे पूर्वजों के सोचता हूँ अगर ये कभी संग्रहित करने के बदले गरीब
Read Moreउम्र तो हर दिन बढे मोह का बंधन छूटे ना कर्म से सब फल मिले भाग्य अगर जो फूटे ना
Read Moreहे नर तुम्हें सदैव ही अभिमान रहा यहीं नारी जीवन का त्रस्त रहा सत्य युग हो चाहे त्रेता या फिर
Read Moreओह, तुम लौट आये मुझे यकी था तुम जरूर आओगे, ज्यादा दिन न मेरे बिन तुम रह पाओगे। क्योंकि –
Read Moreसुनो भगत सिंह तुमको फिर से , भारत में आना होगा सोये दिखते लोग यहाँ पर ,उन्हें फिर जगाना होगा
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