बाल साहित्य

बाल कविता

बाल कविता – चुन्नू मुन्नू

चुन्नू मुन्नू पढ़ने जाते रोज़ रोज़ वे उधम मचाते मम्मी पापा जब समझाते सुन कर भूल दुबारा जाते एक दिन एक सिपाही आया मुन्नू को तब बहुत डराया चुन्नू उससे अब घबराया उसने फिर न उधम मचाया — भारत विनय

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बाल कविता

“बच्चे होते स्वयं खिलौने”

सीधा-सादा, भोला-भाला। बचपन होता बहुत निराला।। बच्चे सच्चे और सलोने। बच्चे होते स्वयं खिलौने।। पल में रूठें, पल में मानें।

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