धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

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ईश्वर द्वारा सर्गारम्भ में ऋषियों को वेदज्ञान देने विषयक ऋषि दयानन्द के युक्तिसंगत विचार

ओ३म् सत्यार्थ प्रकाश के सप्तम् समुल्लास में ऋषि दयानन्द ने प्रश्न उपस्थित किया है कि जब परमेश्वर निराकार है तो

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सन्ध्या में अघमर्षण मन्त्रों के पाठ से पाप छूट कर धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष की प्राप्ति होना संभव है

ओ३म् महर्षि दयानन्द जी ने ईश्वर का सम्यक् रीति से ध्यान करने के लिए इसकी सर्वोत्तम विधि पुस्तक रूप में

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सबको आनन्द देने वाला परमेश्वर हम सब पर सब ओर से सर्वदा सुख की वृष्टि करे

ओ३म् परमेश्वर का भली-भांति ध्यान करने को सन्ध्या कहते हैं। सन्ध्या करने का समय रात और दिन के संयोग समय

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असत्य का त्याग और सत्य का ग्रहण मनुष्य का कर्तव्य और धर्म

ओ३म् मनुष्य को मनुष्य इसके मननशील होने के कारण ही कहा जाता है। मनुष्य व पशु में अनेक समानतायें हैं।

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संसार को समस्त भ्रांतियों से मुक्त करना ऋषि दयानंद की एक प्रमुख देन

ओ३म् ऋषि दयानन्द के देश और संसार को अनेक योगदानों में से एक प्रमुख योगदान यह भी है कि उन्होंने

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आर्यसमाज के वेदसम्मत 10 नियमों के आदर्श पालक ऋषि दयानन्द

ओ३म् आर्यसमाज की स्थापना 10 अप्रैल, सन् 1875 को ऋषि दयानन्द सरस्वती ने मुम्बई में की थी। इसका उद्देश्य था

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संसार में सबसे बड़ा परिवार ईश्वर का परिवार है

ओ३म् हम परिवार शब्द का प्रयोग बहुधा करते हैं। पहले भारत में संयुक्त परिवार होते थे। एक परिवार में कई

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ईश्वर सर्वतोमहान और वेदानुयायी ऋषि महान और संसार के आदर्श

ओ३म्             इस संसार और पूरे ब्रह्माण्ड में सबसे महान कौन है? इसका उत्तर है कि इस संसार को बनाने व

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वैदिक वर्ण-व्यवस्था वर्तमान में खण्डित होते हुए भी अंशतः जीवित है

ओ३म्   लेख की भूमिका  डा. जयदत्त उप्रेती जी आर्यसमाजा के वरिष्ठ विद्वान, विचारक वा चिन्तक हैं। आपने फोन पर

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