धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

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ईश्वर सभी शुभ-अशुभ कर्मों का फलदाता होने से न्यायाधीश है

ओ३म् संसार में तीन अनादि एवं नित्य सत्तायें हैं ईश्वर, जीव एवं प्रकृति। संसार की यह तीन सत्तायें सनातन एवं

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ऋषि दयानन्द ने सभी सुखों का त्याग कर वेदप्रचार क्यों किया?

ओ३म् ऋषि दयानन्द ने 10 अप्रैल, सन् 1875 को मुम्बई में आर्यसमाज की स्थापना की और इसके द्वारा संगठित रूप

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आर्यसमाज के विद्वानों, नेताओं तथा कार्यकर्ताओं को निःस्वार्थ भाव से एवं निर्भीकतापूर्वक वेदों का प्रचार करना चाहिये

ओ३म् महर्षि दयानन्द के आगमन से लोगों को यह ज्ञात हुआ कि विद्या व ज्ञान भी सत्य एवं असत्य दो

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वेद सरल नहीं हैं। ईश्वर का साक्षात्कार किये हुए ऋषि ही इसे कुछ कुछ जान सकते हैं

ओ३म् गुरुकुल कांगड़ी के एक पुराने स्नातक पं0 भगवद्दत्त वेदालंकार हुए हैं। उनकी एक पुस्तक है ‘‘वेद विमर्श”। पुस्तक में

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मनुष्य की ही तरह पशु-पक्षियों को भी जीनें का अधिकार है

परमात्मा ने संसार में जीवात्माओं के कर्मों के अनुसार अनेक प्राणी योनियों को बनाया है। हमने अपने पिछले जन्म में

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स्वनामधन्य बाबू देवेन्द्रनाथ मुखोपाध्याय का ऋषि दयानन्द के जीवन साहित्य में प्रमुख स्थान

ओ३म् ऋषि दयानन्द के अनुसंधान प्रधान जीवन चरित लेखकों में स्वनामधन्य पं0 देवेन्द्रनाथ मुखोपाध्याय जी का नाम प्रमुख विद्वानों में

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वेद ने ही सबसे पहले बताया कि सभी प्राणियों में एक जैसा जीवात्मा है

ओ३म् हम मनुष्य हैं। हम वेदों एवं अपने पूर्वज ऋषियों आदि की सहायता से जानते हैं कि संसार में जितनी

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