हास्य व्यंग्य

हास्य व्यंग्य

यतो अधर्मः ततो जयः

परित्राणाय पापीनां, विनाशाय च सुकृताम I अधर्मसंस्थापनार्थाय ,संभवामि नित्यप्रतिम II आजकल सत्य का प्रतिष्ठान धूल-धूसरित और उपेक्षित हो गया है

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