दूर के रसगुल्ले , पास के गुलगुले …!!
इसे जनसाधारण की बदनसीबी कहें या निराशावाद कि खबरों की आंधी में उड़ने वाले सूचनाओं के जो तिनके दूर से
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Read Moreसाल भर का काम, काम ना आया.. मैंने अपने गलतिओ का इनाम है पाया .. इतनी गलतिओ के बाद भी
Read Moreपूरे घर में गन्दगी का अम्बार था, घर की तिजोरी पर हर कोई हाथ साफ़ कर रहा था, जेवर-सोना-चांदी सब
Read Moreव्यंग्य साहित्य की एक विधा है जो उपहास, मजाक और ताने का मिलाजुला स्वरुप है। हिन्दी में हरिशंकर परसाई और
Read Moreवाकई, बेचारा यह दिल, दिल ही तो है, जो पता नहीं कब किस बात के लिए हुड़कने लगे! जैसे, आजकल
Read Moreएक दिन क्या हुआ कि, मैं सुबह-सुबह अखबार की प्रतीक्षा में, अनमने से बैठा हुआ था, तभी मेरे एक मित्र
Read Moreइस वर्ष गर्मी कहर की थी। जालंधर की गर्मी और मच्छरों से मुकाबला, कोई करे भी तो किया करे। दफ्तर
Read More“आप लोग, लोगों को चप्पल घिसवाने से बाज आईए” एक शिकायत-समाधान-प्रकोष्ठ में सुना गया था यह वक्तव्य! सुनकर हवाई-चप्पल पर
Read Moreगधे तो वाकई गधे होते हैं। एकदम सीधे-सादे, मेहनती और संतोषी। गधे के यही तीन गुण उसको महान बना देते
Read Moreठीक उसी तरह ‘कि पहले अंडा आया कि मुर्गी’ की तरह यह सवाल भी मौजू है कि पहले जूते आए
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