गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल “कठिन बुढ़ापा बीमारी है”

हिम्मत अभी नहीं हारी हैजंग ज़िन्दगी की जारी है—मोह पाश में बँधा हुआ हूँये ही तो दुनियादारी है—ज्वाला शान्त हो

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इतिहास

अमर अभिमन्यु ने चक्रव्यूह को किया था छिन्न-भिन्न

प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम के राष्ट्रवादी महानायक बाबू वीर कुँवर सिंह किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। 26 अप्रैल 1858 को

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