अपना दिखाई दे न तो रिश्ता दिखाई दे , हर शख़्स अब तो भीड़ में तन्हा दिखाई दे । कहते हैं जिसको प्यार वो दिखता ही अब नहीं , इनसान अब तो ज़िस्म का भूखा दिखाई दे । उनकी खुशी के वास्ते हम दूर हो गए उनको हमारी बात में धोखा दिखाई दे […]
ग़ज़ल
बात दिल की सुनी नहीं जाती बेरुख़ी अब सही नहीं जाती ।। याद आती हैं तेरी बातें जब। आँख से फिर नमी नहीं जाती ।। मिल गई है मुझे खुशी सारी। फिर भी तेरी कमी नहीं जाती ।। रूह में अब तो बस गया है तू चाह तेरी कभी नहीं जाती […]
ग़ज़ल
इस अंधेरे के घर को तू वीरान कर नूर बनकर ज़माने पे एहसान कर। बात बनती नज़र आएगी फिर यहाँ अपनी शतों को थोडा तू आसान कर। अश्क आाँखों में आकर करें चुग़लियाँ अब छुपाने का इनको तू सामान कर। अनुभवों को समेटे पडे खाट पर, इन बुज़ुर्गों का थोडा तो सम्मान […]
मन की स्वच्छंदता
प्राचीन उपवास में उपवासवाले दिन से एक दिन पहले ‘अरवा’ यानी बिना नमक के ‘अरवा’ भोजन ही किये जाते थे, फिर उपवासवाले दिन ‘सूर्यास्त’ तक जल तक ग्रहण किए बिना उपवास रहते थे यानी निर्जला, फिर उपवास फलाहार से तोड़ते थे ! अब डिजिटल उपवास हो गया है… स्त्रियाँ घर में काम के डर से […]
ग़ज़ल
तुम्हारी याद को मैं गुनगुनाती हूँ ,तो हंगामा, मुहब्बत आँख से जब मैं जताती हूँ ,तो हंगामा । मेरी तन्हाइयों में वो सदा ही साथ रहता है , उसे जब पास में अपने बुलाती हूँ ,तो हंगामा । सियासत के खिलाड़ी तो सदा बातों में रहते हैं , उसे कमियाँ मैं सारी जब […]
ग़ज़ल
भला जो बशर है भला देखता है वो नेकी का रस्ता सदा देखता है भला गर करेगा, भला ही मिलेगा किताबों में ग़ाफ़िल तू क्या देखता है न जाने कहा क्या पहाड़ों से उसने पलट कर जो आई सदा देखता है भटकता फिरे है गली-दर-गली यूँ कभी वो न अपना पता देखता […]
ग़ज़ल
. देखकर जिसको डर गया क्या था तीरगी में उसे दिखा क्या था रात आँखों से नींद थी ग़ायब। जाने दिल का ये मसअला क्या था तेरे चेहरे की बढ़ गयी रौनक़ ख़त में लिक्खा हुआ बता क्या था ज़िन्दगी कर गया मेरी रौशन दीप उल्फ़त का इक जला क्या था […]
ग़ज़ल
मेरी बेचैनियाँ बढ़ाता है मेरे ख़्वाबों में जब वो आता है कैसे आँखों में उसके पढ़ लूँ मैं , मुझसे वो आँख कब मिलाता है । उसकी आदत ही बन गयी है ये मुझको हर बात पर रुलाता है बात दिल की करें भला कैसे वो न सुनता न ही सुनाता है। […]
ग़ज़ल
बताएं ना हरदम बुरा हम किसी को कभी देख लें हम भी अपनी कमी को मचलता है मासूम कलियों को जो भी नहीं शर्म आती उस आदमी को जहां जिस्म बिकते हैं जिंसों की मानिंद कभी मुड़ के देखो न ऐसी गली को सदा आ रही है न जाने कहां से बढ़ा […]
आधा प और यार
देश की गरीबी लॉकडाउन में पता चल रही ! भोजन व रुपये लेनेवाले 95%कथित गरीब हैं, यह देनेवाले 5% मौसमी समाजसेवी और सरकार कथित अमीर हैं? ×××× महामूर्ख तो एक ‘डैडी’ थे, जो उस युग में भी लाडली ‘बेटी’ की सरेआम ‘बोली’ लगा रहे थे ! स्वयंवर नॉट स्वयंवधू ! ×××× कोई तो होगी, जो […]