लघुकथा – विडंबना (बुढापे का दर्द)
रीना नई बहू की जिद्द पर अपने परिवार के साथ मायके मिलने चली आई | सबसे आगे भागती सी डैडी
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Read Moreदेखी है कभी किसी ने मन पर पड़ी झुर्रियां यह तो हमेशा बचपन ही जीता है ढूंढता रहता है कच्ची
Read Moreठक-ठक, ठक-ठक-1 ”ठक-ठक, ठक-ठक”. ”कौन है?” ”मैं हूं पानी.” ”पानी! कहिए-कहिए, आज कैसे दर्शन दिए?” ”मैं तो रोज दर्शन देने
Read Moreरात बेवजह ही अपने पे गुमां करती है। हर एक शय इसके दामन में निहाँ करती है।। रास्तों को तकते
Read Moreग़ज़ल ए दोस्त दोस्ती का, इतना सा भरम रखना। महफ़िल में लोग होंगे, लहज़े को नरम रखना।। यूँ चीखने चिल्लाने
Read Moreरमेश के दूसरा बेटा और बहू नौकरी के साथ-साथ घर की जिम्मेदारी ईमानदारी से निभा रही थे | सास शीतला,
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