गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल – इंसानियत से प्यार जब दीन-ओ-जान हो जायेगा

इंसानियत से प्यार जब दीन-ओ-जान हो जाएगा मुज़्तरिब हाल में हाथ थामना ईमान हो जाएगा रस्म है, ज़िंदगी करवटें बदलती

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