मदन मोहन सक्सेना

गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल : बचपन यार अच्छा था…

जब हाथों हाथ लेते थे अपने भी पराये भी बचपन यार अच्छा था हँसता मुस्कराता था बारीकी जमाने की, समझने

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गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल : आये भी अकेले थे और जाना भी अकेला है

पैसोँ की ललक देखो दिन कैसे दिखाती है उधर माँ बाप तन्हा हैं इधर बेटा अकेला है रुपये पैसोँ की

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गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल : मम्मी तुमको क्या मालूम

सुबह सुबह अफ़रा तफ़री में फ़ास्ट फ़ूड दे देती माँ तुम टीचर क्या क्या देती ताने , मम्मी तुमको क्या

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गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल (किसी के हाल पर यारों,कौन कब आसूँ बहाता है)

ग़ज़ल (किसी के हाल पर यारों,कौन कब आसूँ बहाता है) दिल के पास है लेकिन निगाहों से जो ओझल है

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गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल : सब सिस्टम का रोना रोते

सुबह हुयी और बोर हो गए जीवन में अब सार नहीं है रिश्तें अपना मूल्य खो रहे अपनों में वो

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गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल : हर इन्सान की दुनिया में इक जैसी कहानी है

हर लम्हा तन्हाई का एहसास मुझको होता है जबकि दोस्तों के बीच अपनी गुज़री जिंदगानी है क्यों अपने जिस्म में

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गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल (इश्क क्या है ,आज इसकी लग गयी हमको खबर )

हर सुबह रंगीन अपनी शाम हर मदहोश है वक़्त की रंगीनियों का चल रहा है सिलसिला चार पल की जिंदगी

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