पद्य साहित्य

कवितापद्य साहित्य

चलने की कोशिश कर रहा हूँ

विशाल अंधकार में चलने की कोशिश कर रहा हूँ पथ ऊबड़ – खाबड़ काँटे अनेक घास सूखी – सर्री फैली

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कवितापद्य साहित्य

अभी – अभी निकली है

अभी अभी स्नानकर निकली है मधुभाषी चिड़िया। रेत पर बैठी सेक रही है पर अपने धूप में, उतावली सी हो

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