कविता

रक्षा बंधन विषयक हाइकु

RB

ताकती द्वार
बहन अश्रुधार
भाई का प्यार ।

सजी कलाई
हँस पड़ी अँखियाँ
राखी जो आई ।

डाकिया आया
राखी अक्षत रोली
साथ है लाया ।

धागा है कच्चा
मजहब न देखे
रिश्ता ये सच्चा ।

रक्षा बंधन
नोंकझोंक से भरा
स्नेह बंधन ।

स्नेह अपार
नोंक झोंक से भरा
भाई का प्यार ।

बिटिया अड़ी
बाँधूंगी न मै राखी
दिला दो घड़ी ।

बहना आजा
सरहद पुकारे
ले सूत धागा ।

पहन राखी
भाई है इतराया
बना है पाखी ।

सीमा के पार
राखी का इंतजार
बहना प्यार ।

राखी का पर्व
दीदी का स्नेह मिला
भाई को गर्व ।

पूनों का चाँद
राखी बन चमका
नभ आनंद ।

प्यार से पगे
सूत के कच्चे धागे
कलाई बंधे ।

बिफरा भाई
थक सोयी अँखियाँ
राखी न आई ।

आशीष धन
चाहे बस बहना
न कि कंगन ।

बेटी न जाई
बेटा सूनी कलाई
माता लजाई ।

गुंजन अग्रवाल

गुंजन अग्रवाल
नाम- गुंजन अग्रवाल साहित्यिक नाम - "अनहद" शिक्षा- बीएससी, एम.ए.(हिंदी) सचिव - महिला काव्य मंच फरीदाबाद इकाई संपादक - 'कालसाक्षी ' वेबपत्र पोर्टल विशेष - विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं व साझा संकलनों में रचनाएं प्रकाशित ------ विस्तृत हूँ मैं नभ के जैसी, नभ को छूना पर बाकी है। काव्यसाधना की मैं प्यासी, काव्य कलम मेरी साकी है। मैं उड़ेल दूँ भाव सभी अरु, काव्य पियाला छलका जाऊँ। पीते पीते होश न खोना, सत्य अगर मैं दिखला पाऊँ। छ्न्द बहर अरकान सभी ये, रखती हूँ अपने तरकश में। किन्तु नही मैं रह पाती हूँ, सृजन करे कुछ अपने वश में। शब्द साधना कर लेखन में, बात हृदय की कह जाती हूँ। काव्य सहोदर काव्य मित्र है, अतः कवित्त दोहराती हूँ। ...... *अनहद गुंजन*

2 thoughts on “रक्षा बंधन विषयक हाइकु

  1. गुंजन बहना , आप ने तो मुझे राखी दे दी . धन्यवाद .

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