ख्वाब की किरचें – सुधीर मौर्या
वक़्त ने
मेरी बाह थाम कर
मेरी हथेली पर
अश्क के
दो कतरे बिखेर दिए
मेरे सवाल पर
बोला
ये अश्क नहीं
बिखरे ख्वाब की किरचे हे
सभांल कर रखो
तुम्हे ये याद दिलायंगे
कि मुफलिस
आँखों में ख्वाब
सजाया नहीं करते.
– सुधीर मौर्य
बढ़िया रचना !
aabhar sir..
सुधीर जी लाजवाब रचना ….
bahut bahut dhanywad..
बहुत खूब .
dhanywad sir..