भोर आलोक वसंत
नव जीवन स्पन्दन
मुक्त प्राण तमस
विहग राग अनुराग
हल्की मधुर बयार
अतीत में दबी स्मृतियाँ
आलिंगन साथ समृद्ध ।
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चली जब मदमाती मस्त पवन
चूमने को व्याकुल उन्मुक्त गगन
नाज़ नखरे संग इतराती वसुधा
निखरा लगा जो रूप हल्दी उबटन ।
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2 thoughts on “वसंत पर क्षणिका एवम मुक्तक”
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tahe dil se aabha Gurmel sir ji 🙂
वाह वाह.