देखते-देखते नयनो के जरिए हृदय में महल बना लिया।
बात करते-करते आवाज़ों के जरिए मुझे दिवाना बना दिया
अब तक तुम्हारे अदाओं के रंग में ऐसा रंगीन हो गया हूँ मैं
हमेशा के लिए मेरे ख्वाबों-ख्यालों मे स्थायी जगह बना लिया
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5 thoughts on “देखते-देखते—-”
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वाह क्या बात है श्रीमान जी!!!!
कुछ गंभीरता से और आराम से लिखिए. जल्दीबाजी नहीं.
ठिक है श्रीमान जी!! धन्यवाद!!!
बहुत खूब .
धन्यवाद श्रीमान जी!!