भव-भँवर-पार
दिल कश्ती ने पीड़ा का सागर छिपा रखा
मुस्कानों की लहरें जग में रंग दिखाती
भव भँवर में मंजु कहीँ खो न जाए
उस पार अपनी लौ लगती जा ।
मंजु गुप्ता
भव-भँवर-पार
दिल कश्ती ने पीड़ा का सागर छिपा रखा
मुस्कानों की लहरें जग में रंग दिखाती
भव भँवर में मंजु कहीँ खो न जाए
उस पार अपनी लौ लगती जा ।
मंजु गुप्ता
जब से मिली हूँ तुमसे भूलकर सभी गमो को खुशियों को अपनायी हूँ साथ तेरा पाकर लगे जैसा रब का साथ पायी हूँ प्यार कभी कम न हो ये खुदा से फरियाद लगायी हूँ साथ कभी न छुटे तेरा बस यही मैं चाहती हूँ जब हमदोनो मिलते है बागो के फूल खिल जाते है फूलो […]
जागो जागो भरत कुमारो, कैसा दुर्दिन आया है, देवों से पावन हुई धरा पर, असुर साम्राज्या क्यों छाया है, मर जाओ पर दश पातक मार। यह स्वाभिमान जगाओ तुम।। स्वाभिमान के सोये नर, कब टूटेगी तेरी तंद्रा, लुट जायेगा एक एक कर, क्या बना रहेगा तू अंधा, जो बचा उसे ही बचाओ तुम। ना रहो […]
व्यस्तता कभी इतनी हावी हो जाती है कि – हम खुद से मिल नहीं पाते ! ऐसा लगता है जैसे हमें क्या करना है और क्या हो रहा है मगर व्यस्त रहना अपने आप में उत्तम है क्यूँकि – हम किसी के बहाने ही सही बहुत कुछ संभल जाते हैं…. ! * पंकज त्रिवेदी
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