आओ, संस्कार दीप जलाएं! सुंदर मानव जन्म मिला हैं पुण्योदय से, क्यों कलुषित स्वार्थ, लोभ, लालच कषायों से।। दुष्प्रवृत्ति, भ्रष्टाचार मानवता को लील रही है, घटते संस्कार, दुराचार उलझनों की जड़ है।। रिश्तों में पावनता, आत्मीयता, अपनापन नहीं, कुत्सित मनोभावों से सिसके हरियाली महीं।। प्रेम, ममता, दुलार, आदर, सम्मान विहीन घर, नहीं गूंजती उन्मुक्त हंसी, नहीं […]
मेरे मन की यह अभिलाषा पूरी हो जन जन की आषा, मिटे गरीबी और निराशा संस्कार बन जाये परिभाषा। सबको शिक्षा, इलाज मिले अमीर गरीब का भाव हटे, बेटा बेटी का अब भेद मिटे मेरे मन की यह अभिलाषा। गंदी राजनीति न हो वादे सारे ही पूरे हो जिम्मेदारी भी तय हो अपनी भी जिम्मेदारी […]
छोटा सा दीपक हूँ, कहते हैं घर का चिराग़ मुझसे ही जलती है, घर के उम्मीदों की आग नन्हीं सी है लौ मेरी लेकिन हैं आशाऐं ढेर रहें जो आशाऐं अधूरी या लगती थोड़ी देर मुझे कोसने लगते हैं मुझे लेते हैं घेर बुझा मुझे देते हैं, जब जाता है सूरज जाग छोटा सा […]
बढ़िया !