फूल खिले हैं गुलशन गुलशन, देख के हर्षित होता है मन
अवसादों को दूर हटाकर, आओ घूमे उपवन उपवन!
ठंढ हवा से ये न डरते, तप्त सूर्य के सम्मुख रहते
आस पास को सुरभित करते, तितली संग भ्रमरों का गुंजन
सडकों पर चलती है गाड़ी, शोर शराबा करे सवारी
कहीं अगर कोई दब जाए, नाही सुनते उनका क्रंदन
मानव जीवन सबसे सस्ता, क़ानून का अब हाल है खस्ता
उपवन में सजती है क्यारी, माली देखे हो प्रसन्न मन
उपवन को घर ले आये हैं, गमलों में पौधे भाये हैं.
गुलदाउदी डहलिया गेंदा, लाल गुलाब सुगन्धित गम-गम,
फूल संग होते हैं कांटे, जीवन ने सुख दुःख हैं बांटे.
सुख में हम सब इतराते हैं, दुःख में क्यों घबराता है मन.
सुख दुःख दोनों नदी किनारे, इनके बीच जीवन के धारे
दिवा-रात्रि जैसे होते हैं, सुख दुःख में पलता है जीवन
दुःख को अंतर बीच छुपाकर, स्वर्ण भाँति तन को चमकाकर.
परहित चाहे वह है मानव, खुशी बिखेरे वह है जीवन
फूल खिले हैं गुलशन गुलशन, देख के हर्षित होता है मन
जवाहर लाल सिंह ०५.०२.२०१६
3 thoughts on “फूल खिले हैं गुलशन गुलशन”
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बहुत अच्छी कविता !
फूल संग होते हैं कांटे, जीवन ने सुख दुःख हैं बांटे. हमें दोनों को स्वीकारना चाहिए. बहुत बढ़िया.
सुख में हम सब इतराते हैं, दुःख में क्यों घबराता है मन.
सुख दुःख दोनों नदी किनारे, इनके बीच जीवन के धारे बहुत खूब .